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Zindagi Shayari | जिंदगी शायरी

Zindagi Shayari

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ज़िन्दगी तुहि बता कैसे तूझे प्यार करूं
तेरी हर एक सुबह मुझे अपनों से दूरी का एहसास देती है
वो लोग आते क्यू है ज़िन्दगी में हमारे
जिसे बिछड़ना होता जिन को किसी बहाने से
खुशी मिली है न सके गम मिला तो रो न सके ज़िन्दगी का यही दस्तूर है
जिसे चाहा उसे पा न सके और जिसे पाया उसे चाह न सके
यूँ ज़िन्दगी में ऐसा ही क्यों होता है
जिससे हम बहुत प्यार करते है ज़िन्दगी उसे हमसे बहुत दूर कर देती है
ज़िन्दगी की हर तमन्ना पूरी नहीं होती
तक़दीर की कोई भी मजबोरी नै होती
गलत किया जो तेरे वादे पे एतबार किया
सारी जिंदगी तेरे आने का इंतज़ार किया
अगर मोहब्बत नही थी तो बता दिया होता
तेरे एक चुप ने मेरी ज़िन्दगी तबाह कर दी
लुटा दी हमने अपना सब हासिल-ज़िन्दगी
सिकंदर से फ़क़ीर हुए एक यार की खातिर
मुकाम-मोहब्बत तूने समझ ही नहीं वर्ना
जहाँ तक तेरा साथ वहां तक मेरी ज़िन्दगी थी
खवाहिश ऐ ज़िन्दगी बस इतनी सी है
साथ तुम्हारा हो और ज़िन्दगी कभी ख़त्म न हो
वादे मोहब्बत के मुझे करने नहीं आते सनम
एक ज़िन्दगी है जब चाहे मांग लेना
अजीब तरह से गुजर रही ज़िन्दगी अपनी
दिलों पे राज़ किया फिर भी मोहब्बत को तरस रहे है
सज़ा बन जाती है गुज़रे हुए वक़्त की यांदे
न जाने क्यों चोर जाने के लिए ज़िन्दगी में आये थे
ज़िन्दगी कितनी भी मुश्किल क्यू न लगे आपके पास कुछ न कुछ
करने और कामियाब होने की गुंजाइश हमेशा रहती है
वो जिसकी याद में खर्च कर दी ज़िन्दगी हमने
वो ही शख्स आज हमें गरीब कहकर चला गया
मेरी हर सांस में तू है मेरी हर ख़ुशी में तून है
तेरे बिन ज़िन्दगी कुछ नही क्युकी मेरी पूरी ज़िन्दगी ही तू है
मेरी ज़िन्दगी में खुशियाँ तेरे भने से है
आधी तुझे सताने से है आधी तुझे मनाने से है
ज़िन्दगी जीने के लिए थी
लोगो ने सोचने में ख़त्म कर दी
अगर चाहते हो कुछ बड़ा करना तो अपनी चोंच बुलंद रखना
क्युकी कमज़ोर सोच इंसान को गिराती है उसके इरादे और कमज़ोर बनाती है
सही गलत कुछ नहीं होता ये तो बस नज़रिए का खेल है
सबके साथ चलने में ही ज़िन्दगी में मेल है
समंदर न सही पर एक नदी तो होनी चाहिए,
तेरे शहर में ज़िंदगी कहीं तो होनी चाहिए।
इक टूटी-सी ज़िंदगी को समेटने की चाहत थी,
न खबर थी उन टुकड़ों को ही बिखेर बैठेंगे हम।

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फिक्र है सबको खुद को सही साबित करने की,
जैसे ये ज़िंदगी, ज़िंदगी नहीं, कोई इल्जाम है।
ले दे के अपने पास फ़क़त एक नजर तो है,
क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नजर से हम।
नफरत सी होने लगी है इस सफ़र से अब,
ज़िंदगी कहीं तो पहुँचा दे खत्म होने से पहले।
ज़िंदगी जिसका बड़ा नाम सुना है हमने,
एक कमजोर सी हिचकी के सिवा कुछ भी नहीं।
एक उम्र गुस्ताखियों के लिये भी नसीब हो,
ये ज़िंदगी तो बस अदब में ही गुजर गई।
हर बात मानी है तेरी सिर झुका कर ऐ ज़िंदगी,
हिसाब बराबर कर तू भी तो कुछ शर्तें मान मेरी।
अब समझ लेता हूँ मीठे लफ़्ज़ों की कड़वाहट,
हो गया है ज़िंदगी का तजुर्बा थोड़ा थोड़ा।
मुझे ज़िंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं है दोस्तों,
पर लोग कहते हैं यहाँ सादगी से कटती नहीं।
मंजिलें मुझे छोड़ गयी रास्तों ने संभाल लिया,
जिंदगी तेरी जरूरत नहीं मुझे हादसों ने पाल लिया।
ज़िन्दगी एक हसीन ख़्वाब है,
जिसमें जीने की चाहत होनी चाहिये,
ग़म खुद ही ख़ुशी में बदल जायेंगे,
सिर्फ मुस्कुराने की आदत होनी चाहिये।
हो के मायूस न यूं शाम से ढलते रहिये,
ज़िन्दगी भोर है सूरज सा निकलते रहिये,
एक ही पाँव पे ठहरोगे तो थक जाओगे,
धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये।
थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी,
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे।
ग़ैरों से पूछती है तरीका निज़ात का
अपनों की साजिशों से परेशान ज़िंदगी।