जो सोचता था बोल देता था, बचपन की आदतें कुछ ठीक ही थी.
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी, जवानी का लालच दे के बचपन ले गया.
बचपन में तो शामें भी हुआ करती थी, अब तो बस सुबह के बाद रात हो जाती है.
लौटा देती ज़िन्दगी एक दिन नाराज़ होकर, काश मेरा बचपन भी कोई अवार्ड होता.
स्कूल का वो बैग, फिर से थमा दे माँ, यह जिन्दगी का बोझ, उठाना मुश्किल है.
जिसने मेरे बचपन की पदचाप सुनी, अपने घर का ऐसा कोना हाथ लगा.
सुकून की बात मत कर ए ग़ालिब, बचपन वाला इतवार अब नही आता.
रोने की वजह भी न थी, न हंसने का बहाना था, क्यो हो गए हम इतने बडे, इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था.
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो, चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे.
खुदा अबके जो मेरी कहानी लिखना, बचपन में ही मर जाऊ ऐसी जिंदगानी लिखना.
दूर मुझसे हो गया बचपन मगर, मुझमें बच्चे सा मचलता कौन है.
मैंने मिट्टी भी जमा की, खिलौने भी लेकर देखे, जिन्दगी में वो मुस्कुराहट नही आई जो बचपन में देखे.
बचपन के किस्सों में जिन्दगी ढूढ़ते हैं, वो बे परवाह बचपन, वो छोटी-छोटी खवाहिशें.
देखो बचपन में तो बस शैतान था, मगर अब खूंखार बन गया हूँ.
मैं ने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोई, आज तक मसरूफ़ हूँ उस ख़्वाब की तकमील में.
अपने बच्चों को मैं बातों में लगा लेता हूं, जब भी आवाज़ लगाता है खिलौने वाला.
बचपन भी कमाल का था खेलते खेलते, चाहें छत पर सोयें, या ज़मीन पर, आँख बिस्तर पर ही खुलती थी.
जिस के लिए बच्चा रोया था, और पोंछे थे आँसू बाबा ने, वो बच्चा अब भी ज़िंदा है, वो महँगा खिलौना टूट गया.
कितने खुबसूरत हुआ करते थे, बचपन के वो दिन, सिर्फ दो उंगलिया जुड़ने से, दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी.
उम्र-ऐ-जवानी फिर कभी ना मुस्करायी बचपन की तरह, मैंने साइकिल भी खरीदी, खिलौने भी लेके देख लिए.
काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था, खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था, कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में, वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था.
झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हम, ये उन दिनों की बात हैं जब बच्चे थे हम.
बचपन समझदार हो गया, मैं ढूंढता हू खुद को गलियों मे.
कितने खुबसूरत हुआ करते थे बचपन के वो दिन, सिर्फ दो उंगलिया जुड़ने से दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी.
याद कर रहा अपना बचपन, कब कितना मैं बड़ा हुआ था, माँ के पल्लू के सम्बल से, किस हालत मे खड़ा हुआ था.
बाग़ में तितली को पकड़ खुश होना, तारे तोड़ने जितनी ख़ुशी देता था.
ना फ़िक्र थी ना चिंता थी, खेलने की अटूट क्षमता थी, करते रहते कोई ना कोई कारनामा, बना कर रख देते जीवन को हंगामा.
दहशत गोली से नही दिमाग से होती है, और दिमाग तो हमारा बचपन से ही खराब है.
दिल अब भी बचपना है, बचपन वाले सपने अब भी ज़िंदा हैं.
वो बचपन भी क्या दिन थे मेरे, न फ़िक्र कोई न दर्द कोई, बस खेलो, खाओ, सो जाओ, बस इसके सिवा कुछ याद नहीं.
देर तक हँसता रहा उन पर हमारा बचपना, जब तजुर्बे आए थे संजीदा बनाने के लिए.
एक हाथी एक राजा एक रानी के बग़ैर, नींद बच्चों को नहीं आती कहानी के बग़ैर.
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में, फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते.
बचपन के दिन भी कितने अच्छे होते थे, तब दिल नहीं सिर्फ खिलौने टूटा करते थे, अब तो एक आंसू भी बर्दाश्त नहीं होता, और बचपन में जी भरकर रोया करते थे.
काग़ज़ की नाव भी है, खिलौने भी हैं बहुत, बचपन से फिर भी हाथ मिलाना मुहाल है.
ना मुझे किसी का दिल चाहिए, ना मुझे जमाने से कोई आस है, जो अपनी गर्लफ्रेंड से मेरी सेटिंग करवा दे, मुझे उस सच्चे दोस्त की तलाश है.
बचपन तोह बचपन होता, मन करता मेरा दोबारा बच्चा बन जाऊ.
एक बचपन का जमाना था, जिस में खुशियों का खजाना था. चाहत चाँद को पाने की थी, पर दिल तितली का दिवाना था.
जिंदगी फिर कभी न मुस्कुराई बचपन की तरह, मैंने मिट्टी भी जमा की खिलोने भी लेकर देखे.
बचपन में आकाश को छूता सा लगता था, इस पीपल की शाख़ें अब कितनी नीची हैं.
भीगी हुयी जिंदगी की यही कहानी है, कुछ बचपन से नालायक था, बाकी आप सबकी मेहरबानी है.
यारों ने मेरे वास्ते क्या कुछ नहीं किया, सौ बार शुक्रिया अरे सौ बार शुक्रिया.
बिना समझ के भी, हम कितने सच्चे थे, वो भी क्या दिन थे, जब हम बच्चे थे.
किसने कहा नहीं आती वो बचपन वाली बारिश, तुम भूल गए हो शायद अब नाव बनानी कागज़ की.
जिंदगी फिर कभी न मुस्कुराई बचपन की तरह, मैंने मिट्टी भी जमा की खिलौने भी लेकर देखे.
घर का बोझ उठाने वाले बच्चे की तक़दीर न पूछ, बचपन घर से बाहर निकला और खिलौना टूट गया.
आते जाते रहा कर ए दर्द, तू तो मेरा बचपन का साथी है.
मुझे फिर से थमा दे ओ माँ, वही मेरे स्कूल का बैग, अब मुझे और नहीं सहा जाता, इस जिन्दगी का भारी बोझ.
बचपन में भरी दुपहरी नाप आते थे पूरा गाँव, जब से डिग्रियाँ समझ में आई, पाँव जलने लगे.
बचपन की दोस्ती थी बचपन का प्यार था, तू भूल गया तो क्या तू मेरे बचपन का यार था.
ज्यादा कुछ नही बदलता उम्र बढने के साथ, बचपन की जिद समझौतों मे बदल जाती है.
बचपन में जहाँ चाहा हँस लेते थे, जहाँ चाहा रो लेते थे, और अब मुस्कान को तमीज चाहिए, और आंशुओं को तन्हाई.
वो बचपन क्या था, जब हम दो रुपए में जेब भर लिया करते थे, वो वक़्त ही क्या था, जब हम रोकर दर्द भूल जाया करते थे.
बेफिकर थे बेशरम थे उम्र की उस दौर में, ना जाने कहां खो गए जिन्दगी की होर में.
जिस के लिए बच्चा रोया था और पोंछे थे आँसू बाबा ने, वो बच्चा अब भी ज़िंदा है वो महँगा खिलौना टूट गया.
मम्मी की गोद और पापा के कंधे, न पैसे की सोच और न लाइफ के फंडे, न कल की चिंता और न फ्यूचर के सपने, अब कल की फिकर और अधूरे सपने.
हँसते खेलते गुजर जाए वैसी शाम नहीं आती हैं, होठों पर अब बचपन वाली मुस्कान नहीं आती हैं.
हंसने की भी, वजह ढूँढनी पड़ती है अब, शायद मेरा बचपन, खत्म होने को है.
चलो आज बचपन का कोई खेल खेलें, बड़ी मुद्दत हुई बे-वजह हंसकर नहीं देखा.
बचपन साथ रखियेगा जिंदगी की शाम में, उम्र महसूस नहीं होगी सफ़र के मुकाम में.
बचपन के प्यार को यूँ जुदा न करना, याद हमारी आये तो मिलने की दुआ करना.
कितना आसान था बचपन में सुलाना हम को, नींद आ जाती थी परियों की कहानी सुन कर.
महफ़िल तो जमी बचपन के दोस्तों के साथ, पर अफ़सोस अब बचपन नहीं है किसी के पास.
बचपन मे सोचा था चाँद को छू लूँ, तुमको देखा तो ये ख्वाहिश जाती रही.
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में, फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते. बशीर बद्र
चले आओ कभी टूटी हुई चूड़ी के टुकड़े से, वो बचपन की तरह फिर से मोहब्बत नाप लेते हैं.
ज़िन्दगी छोड़ आया हूँ कहीं उन गलियों मे, जहाँ कभी दौड़ जाना ही ज़िन्दगी हुआ करती थी.
ना कुछ पाने की आशा ना कुछ खोने का डर, बस अपनी ही धुन, बस अपने सपनो का घर, काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का पहर.
वास्तविकता को जानकर, मेरा भी सपनों से समझौता हुआ, लोग यही समझते रहे, लो एक और बच्चा बड़ा हुआ.
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे, कहाँ गया मेरा बचपन ख़राब कर के मुझे.
कागज़ के जहाज बरसात के पानी मे चलाकर, गली में सबसे अमीर हुआ करते थे.