मिल गयी है सफलता तो नजरिये बदले हैं, जो कल थे तक दुश्मन आज करीबी निकले हैं, ना ही बदला हूँ मैं ना ही मेरे अंदाज बदले हैं, ये तो बस शुरुआत थी अभी तो पड़ाव अगले हैं.
तुम्हारे खुश होने के अंदाज से लगता है, कुछ टुटा है बड़ी खामोशी से तेरे अन्दर.
हमारा अंदाज ही कुछ ऐसा है कि हम बोलते है, तो बरस जाते है और खामोश रहते है तो लोग तरस जाते है.
आप और आपका अंदाज ही कुछ और है, वरना देखते ही बिन मौसम बरसात नहीं होती.
मासूमियत का कुछ ऐसा अंदाज़ था मेरे सनम का, उसे तस्वीर में भी देखूं तो पलकें झुका लेती थी.
कुछ ऐसा अंदाज था उनकी हर अदा में, के तस्वीर भी देखूँ उनकी तो खुशी तैर जाती है चेहरे पे.
हमे भी आते हैं अंदाज़ दिल तोड़ने के, हर दिल में खुदा बसता है यही सोचकर चुप हू मै.
ना जाने क्या कशिश है, उनकी मदहोश निगाहो मे, नजर अंदाज कितना भी करो, नजर उनपे ही पड़ती है.
नफ़रत हो जायेगी तुझे अपने ही किरदार पे, अगर में तेरे ही अंदाज मे तुझसे बात करु.
युं तो गलत नही होते अंदाज चहेरों के, लेकिन लोग वैसे भी नहीं होते जैसे नजर आते है.
हर रिश्ते में विश्वास रहने दो, जुबान पर हर वक़्त मिठास रहने दो, यही तो अंदाज़ है जिंदगी जीने का, न खुद रहो उदास, न दूसरों को रहने दो.
नज़र अंदाज़ हमे करते हो सही भी है, नज़र से नज़र मिली तो कयामत होगी.
मैंने सब कुछ नज़र-अंदाज़ किया हैं, वरना तुम तो मुझे कब का खो देते.
ऐसे, महबूब के, अंदाज़ का, क्या कहिये, रोज़ मिलता है और मिलके भुला देता है.
अपने अंदाज में जियो, दूसरों को नजर अंदाज करके.
कुछ आपका अंदाज है कुछ मौसम रंगीन है, तारीफ करूँ या चुप रहूँ जुर्म दोनो संगीन है.
पास रह कर भी हमेशा वो बहुत दूर मिला, उसका अंदाज़-ए-तगाफुल था खुदाओं जैसा.
किसी को चाहो तो इस अंदाज़ से चाहो, कि वो तुम्हे मिले या ना मिले, मगर उसे जब भी प्यार मिले, तो तुम याद आओ.
ये मुकरने का अंदाज़ मुझे भी सीखा दो, वादे निभा निभा थक गया हूँ मैं.
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि, एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले.
फिर देखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार, रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मिरे आगे.
ज़मीं पर आओ फिर देखो हमारी अहमियत क्या है, बुलंदी से कभी ज़र्रों का अंदाज़ा नहीं होता.
चलतें तो हैं वो साथ पर अंदाज देखिए, जैसे की इश्क करके वो एहसान कर रहें है.
मेरे मरने की खबर देना उसे मगर इस अंदाज़ में, तेरा बरसों से जो अरमान था आज पूरा हो गया.
फकीरों की सोहबत में बैठा कीजिए साहब, बादशाही का अंदाज खुद ब खुद आ जायेगा.
कुछ यूँ मिली नज़रे उनसे, कि बाकी सब नजर अंदाज हो गए
बुलबुल ग़ज़ल-सराई आगे हमारे मत कर, सब हम से सीखते हैं अंदाज़ गुफ़्तुगू का.
हमारी हैसियत का अंदाज़ा तुम ये जान के लगा लो, हम कभी उनके नहीं होते जो हर किसी के हो गए.