गज़ब दस्तूर है महफ़िल से अलविदा कहने का, वो भी ख़ुदा-हाफ़िज़ कहते है जिनके ठिकाने नहीं होते.
रुक सी गयी है ज़िन्दगी आज भी वही, जिस मोड़ पर तु ने अलविदा कहा था.
अलविदा कह गया सबसे फिर बिता कल, नई उम्मीद की तलाश में होने लगी हलचल.
तुम दर्द हो तुम ही आराम हो मेरी दुआवो से आती है, बस ये सदा मेरी होके हमेशा ही रहना कभी ना कहना अलविदा.
अजीब था उनका अलविदा कहना, सुना कुछ नहीं और कहा भी कुछ नहीं, बर्बाद हुवे उनकी मोहब्बत में, की लुटा कुछ नहीं और बचा भी कुछ नहीँ.

उसकी दर्द भरी आँखों ने जिस जगह कहा था अलविदा, आज भी वही खड़ा है दिल उसके आने के इंतज़ार में.
मिलता था हर रंग जिन्दगी का जिसमें, वो आज अलविदा जाने क्यो कह रहा है
बड़े गरूर से वो अलविदा कहके चले थे, फिर न जाने क्यूँ मुड़ मुड़ के देखते रहे.
बड़े गरूर से वो अलविदा कहके चले थे, फिर न जाने क्यूँ मुड़ मुड़ के देखते रहे.
वो बग़ल में मेरे बैठे और मुस्करा दिए, हमने भी लफ़्ज़ों को अलविदा कह दिया.

चांदनी रात अलविदा कह रही है, ठंडी सी हवा दस्तक दे रही है, जरा उठाकर देखो नज़ारों को, एक प्यारी सी सुबह आपको शुभ दिवस कह रही है.
लिपट लिपट कर कह रही है, ये जनवरी की आखरी शामे, अलविदा कहने से पहले, एक बार गले से तो लगा लो.
अज़ीज़ो आओ अब इक अल-विदाई जश्न कर लें, कि इस के ब’अद इक लम्बा सफ़र अफ़सोस का है – ख़ुर्शीद तलब
आज किसी मोड़ पर उसे अलविदा कह दिया, जो कभी शामिल ही नहीं था मेरी जिंदगी में.
सोया था जिंदगी को अलविदा कहकर दोस्तों, किसी की बेपनाह दुआ ने मुझे फिर से जगा दिया.

वो अलविदा की रस्म भी अजीब थी, उसका पत्थर सा चेहरा कभी भूलता नहीं.
अलविदा कहते डर लगता है, मन क्यूँ दीवाना सा लगता है.
घर में रहा था कौन कि रुख़्सत करे हमें, चौखट को अलविदा कहा और चल पड़े.
वक्त नूर को बेनूर कर देता है, मामूली जख्म को भी नासूर कर देता है, कौन चाहता है, तुम्हें अलविदा कहना ये वक्त है, जो इंसान को मजबूर कर देता है.
कलेजा रह गया उस वक़्त फट कर कहा जब अलविदा उसने पलट कर. – पवन कुमार

क्या पता अब तुमसे मिलना हो न हो, चाह के फूलों का खिलना हो न हो, बिन मिले ही या कहोगे अलविदा.
तुम ख्वाबों में इन पर्दों में आया ना करो, हर सुबह जब मुस्कुराकर अलविदा कहना ही है, तो यूँ प्यार से हर रात गले लगाया ना करो.
तेरी मोहब्बत से लेकर, तेरे अलविदा कहने तक, सिर्फ तुझ को चाहा है, तुझसे कुछ नहीं चाहा.
अज़ीज़ो आओ अब इक अल-विदाई जश्न कर लें, कि इस के बाद इक लम्बा सफ़र अफ़सोस का है – ख़ुर्शीद तलब
मेरी तन्हाई को मेरा शौक ना समझना, बहुत प्यार से दिया है यह तोहफा किसी ने.

अब कर के फ्हरामोश तो नाशाद करोगे, पर हम जो न होंगे तो बहुत याद करोगे.
अपनी नाजायज़ जिद को अलविदा कह दो, और भी ग़म है ज़माने में सिवा इश्क के.
लगा जब यूँ कि उकताने लगा है दिल उजालों से, उसे महफ़िल से उस की अलविदा कह कर निकल आए. – परविंदर शोख़